रामजी के जीवन के संघर्ष और उनकी महानता को बताने वाले (ek galti le doobi warna bahut bada gyani tha ravan)महान धर्मग्रन्थ रामायण में रावण को दशानन भी कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि रावण के दस सिर थे। लोग मानते हैं कि रावण के दस सिर का अर्थ उसके अथाह ज्ञान से है। रावण ऋषि विश्वश्रवा का पुत्र और महापंडित भी था। उसे ज्योतिष, वास्तु और विज्ञान विद्या का भी बहुत ज्यादा ज्ञान था। रावण द्वारा कई ग्रंथों की रचना की गई है, आइये जानते वे सभी ग्रन्थ कौन-कौन से हैं।
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रावण ने बनाया था शिव तांडव स्त्रोत –
ऐसा कहा जाता है की रावण भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। हिन्दू ग्रंथों में इस बात का जिक्र मिलता है कि रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए विशाल कैलाश पर्वत को भी उठा लिया था। रावण ने अपने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘शिव तांडव स्तोत्र‘ की रचना की थी।
महाज्ञानी रावण द्वारा रचित ‘रावण संहिता’ –
रावण द्वारा अपने जीवन, ज्योतिष और अन्य विद्याओं के बारे में, जो भी उसे पता थी उनका रावण संहिता में वर्णन किया गया है।
दस शतकात्मक अर्कप्रकाश भी रावण द्वारा रचित है –
रावण ने अपने इस ग्रंथ में उपचार और तंत्र विद्या के बारे में काफी विस्तार से समझाया है। यह ग्रंथ इस समय भी काफी लोकप्रिय है।
दस पटलात्मक –
इस ग्रंथ में भी चिकित्सा,तंत्र विद्या के बारे में जानकारी दी गई है, इसे भी रावण द्वारा लिखा गया है।
रावण द्वारा रचित है उड्डीशतंत्र –
रावण ने अपने इस ग्रंथ में भी चिकित्सा, तंत्र विद्या के बारे में काफी विस्तार से वर्णन किया है। इस पुस्तक में वशीकरण और टोटके के बारे में भी बात की गई है।(ek galti le doobi warna bahut bada gyani tha ravan) इसमें विशिष्ट तंत्र ज्ञान की गोपनीय साधनाओं, प्रयोगों के रहस्य के बारे में बताया गया है।
इसके अलावा कुमारतंत्र में रावण ने आयुर्वेद के रहस्य, ज्योतिष और तंत्र विद्या के रहस्यों का उदघाटन किया है।
नाड़ी परीक्षा –
रावण ने अपने इस ग्रंथ में नाड़ी चिकित्सा यानी कि नर्वस सिस्टम और तंत्र के क्षेत्र के बारे में नॉलेज दी है।
अरुण संहिता –
रावण की यह रचना संस्कृत भाषा में की गयी थी। इस ग्रंथ में जन्म कुण्डली, हस्त रेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का वर्णन है।
इसके अलावा भी रावण ने अंक प्रकाश, इंद्रजाल, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, रावणीयम जैसे ग्रंथों की रचना की थी।
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